15 जून को प्रति वर्ष मनाया जाता है बाबा नीम करोरी जी का प्रतिष्ठा दिवस,लाखो लोग भंडारे में करते है प्रसाद ग्रहण,सभी व्यवस्था पूर्ण करने के सीएम धामी के निर्देश

15 जून को प्रति वर्ष मनाया जाता है बाबा नीम करोरी जी का प्रतिष्ठा दिवस,लाखो लोग भंडारे में करते है प्रसाद ग्रहण,सभी व्यवस्था पूर्ण करने के सीएम धामी के निर्देश

शमीम अहमद प्रधान संपादक

उत्तराखंड नैनीताल के कैंची धाम में 15 जून को होने वाले स्थापना दिवस को लेकर जगमग हुआ बाबा नींब करौरी आश्रम, लाखो श्रद्धालुओं के आने की संभावनाए है। हर साल की तरह इस साल भी कैंची धाम में
हर साल की तरह इस साल भी कैंची धाम में 15 जून 2025 को प्रसिद्ध भंडारे का आयोजन किया जाएगा. जहां लाखों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। बता दे कि जानकारी के अनुसार
15 जून 1976 को महाराज की मूर्ति की स्थापना और अभिषेक किया गया और उस समय सभी ने नीम करोली बाबा की भौतिक उपस्तिथि को महसूस किया।
15 जून को होने वाले कैंची धाम स्थापना दिवस को लेकर जगमग हुआ बाबा नींब करौरी आश्रम, 3 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावनाए
कैंची धाम आश्रम में हनुमानजी और अन्य मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा 15 जून को अलग अलग वर्षों में की गई थी. इस तरह से 15 जून को प्रतिवर्ष प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है. नीम करोरी बाबा ने स्वयं भी कैंची धाम का प्रतिष्ठा दिवस 15 जून को तय किया था. नीम करोली बाबा ने 10 सितंबर 1973 को महासमाधि ली थी और भौतिक शरीर को छोड़ा था. उनके अस्थि कलश को कैंची धाम में स्थापित किया गया था और इस तरह बाबा के भक्तों ने बाबा के मंदिर का निर्माण कार्य 1974 में शुरू किया था।
15 जून 1976 को महाराज की मूर्ति की स्थापना और अभिषेक किया गया और उस समय सभी ने नीम करोरी बाबा की भौतिक उपस्तिथि को महसूस किया. फिर वैदिक मंत्रोचार के साथ विशिष्ट विधि से बाबा की मूर्ति की स्थापना हुई और नीम करोरी बाबा कैंची धाम में गुरुमूर्ति रूप में विराजित हुए.

CM धामी ने नीम करोरी आश्रम कैंची धाम से मंदिरों में स्वच्छता अभियान की शुरुआत की
बाबा के भीतर देवभूमि के लिए बहुत प्रेम था

बाबा नीम करौली 20 शताब्दी में उत्तराखंड आये थे, यहीं 1942 में कैंची गांव का उन्होंने पहली बार भ्रमण किया. उस समय एक स्थानीय ग्रामीण से उनकी भेंट हुई थी. उन्होंने बाबा से पूछा था कि उनके अगले दर्शन कब होंगे. तब बाबा ने कहा था कि 20 वर्ष बाद मैं फिर कैंची आऊंगा. सन 1962 में उन्होंने पुनः कैंची की यात्रा की तथा नदी के तट पर खड़े होकर तट के दूसरी तरफ जहां दो महान संतों प्रेमी बाबा एवं सोमवारी बाबा ने हवन किया था, जाने की इच्छा प्रकट की थी. मां के साथ नदी के साथ चलते हुए 25 मई 1962 के ऐतिहासिक दिन बाबा ने उसी जगह अपने पवित्र पग रखे थे. जहां आज कैंची मंदिर है।
वर्ष 1965 में हनुमान मंदिर को पूरा किया गया, एवं उसी वर्ष 15 जून को पहली बार भंडारे का आयोजन किया गया था. जिसके बाद से प्रत्येक वर्ष इसी तिथि के दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है और ये दिन प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कैंची धाम को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाला व्यक्ति कभी भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता. यहां पर मांगी गई मनोकामना पूर्णतया फलदायी होती है।

कैंची धाम की स्थापना दिवस के लिए अभूतपूर्व सुरक्षा के इंतेज़ाम किये गये है ताकि किसी को भी सुरक्षा की दृष्टि से कोई परेशानी न हो इसके लिये मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कड़े निर्देश दिए है।

कैंची धाम मेले के सकुशल एवं व्यवस्थित आयोजन के सम्बन्ध में बैठक के दौरान आईजी कुमायू ने सभी तैयारियां पूर्ण करली है यहां बाबा के दर्शन करने आने वाले किसी भी व्यक्ति को कोई दिक्कत नही होगी।

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