बेमिसाल बलिदानी सप्ताह””… 20 दिसंबर

बेमिसाल बलिदानी  सप्ताह””… 20  दिसंबर

 

20 दिसंबर 1704  गोबिंद सिंह जी ने अपने परिवार और 400 अन्य शिष्यों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया और निकल पड़े……
उस रात भयंकर सर्दी थी और बारिश हो रही थी ..सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया। बारिश के कारण नदी में उफान था। अनेक सैनिक शहीद हो गए, कुछ नदी में ही बह गए। इस अफरातफरी में गुरुजी का परिवार बिछुड़ गया। माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए। दोनों बड़े पुत्र गुरु जी के साथ ही थे।
उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया। अब उनके साथ दोनों बड़े साहिबजादे और 40 योद्धा थे। शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया । अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में दूसरे चमकौर युद्ध के नाम से जाना जाता है ।
उस युद्ध में दोनों बड़े साहिबजादे और 40 अन्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए।
उधर दोनों छोटे पुत्रों जो 20 दिसंबर रात को ही गुरु जी से बिछुड़ गए थे माता गूजरी के साथ सरहिंद के किले में कैद कर लिए गए थे ।
सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लो नहीं तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा… दोनों साहिबज़ादों ने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया पर धर्म नहीं छोड़ा……
गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 दिसंबर से 27 दिसंबर के बीच अपने चार होनहार बेटे देश–धर्म की खातिर वार दिए। माता गूजरी ने दोनों बच्चों के साथ ये ठंडी रातें सरहिन्द के किले में, ठिठुरते हुए गुजारी थी। बहुत वर्षों तक यह एक सप्ताह, यानि 21 दिसंबर से 27 दिसंबर तक लोग शोक मनाते थे और जमीन पर सोते थे।

अंग्रेजियत के नशे में डूबे लोगों ने तो देश–धर्म की खातिर गुरु साहब की कुर्बानी को भुला दिया परंतु हम देशभक्त नहीं भूलने वाले…..

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