हीरा सिंह गढ़वाली,संघर्ष से सफलता की नई कहानी,आइये जानते हैं उनकी कहानी

हीरा सिंह गढ़वाली,संघर्ष से सफलता की नई कहानी,आइये जानते हैं उनकी कहानी

ब्यूरो रिपोर्ट

चमोली। चमोली के वाण गांव के युवक ने अपने हौसले और मेहनत से बदली अपनी किस्मत, बने ट्रेकिंग गाइड,देवभूमि उत्तराखंड ने इस देश को समाज के हर क्षेत्र में बेमिसाल हीरे दिए हैं, लेकिन चमोली जिले के वाण गांव के हीरा सिंह ‘गढ़वाली’ ने यह साबित कर दिया है कि उनका नाम ही नहीं, बल्कि उनकी जीवन यात्रा भी अनमोल है। 16 अगस्त 1991 को कृपाल सिंह बिष्ट और कस्तूरा देवी के घर जन्मे हीरा का बचपन संघर्षों से भरा रहा। लगभग 1300 की आबादी वाले इस खूबसूरत सीमांत वाण गांव में अधिकांश लोग कृषि और बागवानी पर निर्भर हैं। आर्थिक तंगी के चलते हीरा की शिक्षा केवल 12वीं कक्षा तक ही हो पाई, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वाण गांव की प्राकृतिक सुंदरता किसी भी हिल स्टेशन से कम नहीं है, फिर भी राज्य की सरकार ने इसके विकास को लेकर कभी गंभीरता नहीं दिखाई। हीरा ने अपने जीवन में कई बार परीक्षाएं दीं, लेकिन सामाजिक चुनौतियों ने उन्हें मजबूत बना दिया। 2011 में जब हीरा की मां बीमार पड़ीं, तो उन्होंने परिवार की जिम्मेदारियों को उठाते हुए देहरादून जाकर मां का इलाज करवाया। मां के ऑपरेशन के बाद हीरा ने परिवार का सहारा बनने का संकल्प लिया। 20 वर्ष की आयु में उनका विवाह बबीता से हुआ और अब उनके एक 10 वर्षीय बेटे हैं। वाण गांव में साहसिक पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए हीरा ने चाय की दुकान खोली और बाद में ढाबा शुरू किया। फोटोग्राफी का शौक भी उन्हें इलाके का फोटोग्राफर बना गया। धीरे-धीरे उन्होंने एक कॉमन सर्विस सेंटर भी शुरू किया, जिससे गांव के लोगों को आवश्यक प्रमाण पत्र बनवाने में मदद मिलती है। हालांकि, हीरा का मन दुकान में नहीं लगा। उन्होंने ट्रेकिंग गाइड बनने का सपना देखा और बैंक से कर्ज लेकर ट्रैकिंग के लिए आवश्यक सामान खरीदा। कठिनाइयों का सामना करते हुए, उन्होंने सैलानियों को बेदनी बुग्याल, रूपकुंड, फूलों की घाटी जैसे स्थलों का भ्रमण कराने लगे। आज वह ट्रेकिंग से अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं और 30 से अधिक लोगों को रोजगार भी देते हैं। हीरा सिंह ‘गढ़वाली’ ने विगत 15 वर्षों से ट्रेकिंग का कार्य कर अपने 8 सदस्यीय परिवार की हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। 2014 में पिता की असमय मृत्यु ने उन्हें अंदर तक हिला दिया था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी ने उन्हें कभी टूटने नहीं दिया। आज हीरा का नाम न केवल उनके गांव में बल्कि पूरे उत्तराखंड में एक प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है।

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